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GAUTAM "रवि"

Abstract Romance Classics

4.5  

GAUTAM "रवि"

Abstract Romance Classics

गुलाल

गुलाल

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602


बहुत दूर हूँ उससे फिर भी कहीं आसपास रखता हूँ,

दुनिया की इस भीड़ में कुछ अपने खास रखता हूँ,


चलो खुश है वो मुझे परेशान देखकर ही शायद,

कभी कभी बस इसीलिए ही खुद को उदास रखता हूँ,


नीम से कड़वे अनुभवों को समेटकर दामन में अपने, 

जुबां पर अपनी मैं खालिस शहद सी मिठास रखता हूँ,


जिन ज़ज्बातों को तुम ढूँढ रहे हो अब भी इधर उधर,

कभी देखना कुरेद कर दिल मेरा,

दिल में छुपे कितने ऐसे ज़ज्बात दफ़्न रखता हूँ,


खामोशियों में ढ़ल रही है ये शाम भी यूँ ही मगर, 

बाकी ना फिर भी दिल में कोई मलाल रखता हूँ, 

हक है तुम्हारा, नाराज़ रहो तुम,

बन पड़े जितना, मैं तो सबका ख्याल रखता हूँ, 


तुम मांग लेना मुझसे जब भी चाहो जवाब,

पर जो तुम्हें सोचने को मजबूर कर दें,

ज़हन में कितने ही ऐसे सवाल रखता हूँ,


नीरस सी, बेरंग सी भले लगे दुनिया मेरी,

पर सबके जीवन में खुशियों के रंग भर दूँ,

पास में अपने ऐसे गुलाल रखता हूँ,


जानता हूँ तुम अच्छे तैराक हो,

पार कर दोगे तुम समुंदर भी सारे, 

पर जिनमें डुबा दूँ तुम्हें, 

आँखों में अपनी ऐसे तालाब रखता हूँ। 


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