ग्रामीण नारी
ग्रामीण नारी


अबला नहीं गाँव की नारी,
यही गाँव की शान ।
कमतर मत आँको पुरुषों से,
दो इनको सम्मान ।।
गृहणी बनकर नारी देखो,
घर - आँगन नित्य सजाती है ।
वक्त पड़े तो खेतों में भी,
वो अपना स्वेद बहाती है ।
गढ़ती नित परिभाषा श्रम की,
हृदय आत्म - सम्मान ।
कमतर मत आँको,,,,,,,,
जोत रही है हल खेतों में,
अन्न धरा से उपजाती है ।
दारुण विपदाएं सहकर भी,
वह घर - परिवार चलाती है ।
ममता की प्रतिमूर्ति सरीखी,
देती सबको मान ।
कमतर मत आँको----------
ग्रामीण औरतें श्रमी बहुत,
पशुओं को चारा डाल रहीं ।
निर्धनता में मजदूरी कर,
अपने बच्चों को पाल रहीं ।
मिले नहीं आभूषण तन को,
या महँगा परिधान ।
कमतर मत आँको,,,,,,,,, ।