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AMIT SAGAR

Inspirational

4.8  

AMIT SAGAR

Inspirational

ग़र मै गैर मजहबी होता

ग़र मै गैर मजहबी होता

5 mins
296


मैंने एक आम इन्सान हूँ और बहुत खुश हूँ 

धर्म मेरा हिन्दु है भगवान का भक्त हूँ

पर भगवान ने मुझे ठेका तो नहीं दिया है 

किसी गैर मज़हवी से नफरत करने का 

उसकी आबरु उतारने का 

उस पर कीँचड़ उछालने का


उसके धर्म को औछा पौना कहने का

कभी कभी यह धर्म और धर्म की बाते

मुझे जहरीली नागिन नजर आती है 

जो गैर मजहबियों पर जहर उगलती है

और कभी प्रतीत होती है चुभते काँटो सी 


जो ह्मदय के द्वार पर टीस पैदा करती है 

और मेरी मानसिकता को जलाती है भुनाती है 

उस चुभन के दर्द को उस जलन की तपिस को

मैं भी महशूश करना चाहता हुँ इस जहर को 

यह जहालत की बातें यह जलालत के ताने 


क्या मेरे अक्श को भी इतना ही दर्द देंगे 

जितना कि मेरे हमवतन गैरधर्मी को देते है 

अपमान के कड़वे घूँट और ज़मीर के जख्म 

क्या मेरे लियें मीठे और सहज होंगे 


या करेंगे मेरे जमीर पर दर्दनाक वार

इन्ही धर्मो की गहराइयों में गौते लगाता

मैं अपने इमान से बातें करता हूँ 

और निस्वार्थ यह पूछता हूँ


कि मैं गैरमजहबी होता तो क्या होता 

क्या मैं अशफाक उल्ला खान जैंसे

भारत देश पर जान लुटाता 

या फिर करता मीर जफर की तरह 

भारत देश से गद्दारी और मक्कारी 


मैं अब्दुल कलाम की राह पर चल

देश का नाम सारे जहाँ मे रोशन करता

या अब्दुल कसाब की राह पर चल

इन्सानो में रहकर इन्सानो का खून बहाता


मैं खान अब्दुल गफ्फार खान बनकर 

देश में अमन और शान्ती फैलाता 

या फिर औसामा बिन लादेन बनकर

धरती पर लहु बहाता दुनिया पर कहर, ढाता 

मैं तारिख फतेह जैंसा उच्च विचार वाला होता 


जो सच्चे इस्लाम को दुनिया के सामने रखता है

जो दिखावे के ईस्लाम को बेहायायी बताता है

या होता जा़किर नाइक जैंसा बद्जात 

जो दुसरे धर्मो की परिभाषायें बदलता है 


उन्हें तुच्छ और महत्वहीन बताता है

जो करता है अपने मन मियाँ मिट्ठु वाली बातें

मैं होता मोहम्मद रफी जैंसा सुर का, देवता

जिन्होने अपनी जादूई आवाज से 


हर तबगे के लोगो को मोहित किया 

जिनके सुर ताल का एक छटाँक पाने को

हर मजहबी धूप और अगरवत्ती लगाता है

या होता औवेसी जैंसा ढेँचु ढेँचु करने वाला मुर्ख गधा 


जिसकी बाते सुनकर हाथो में चप्पल

स्वतः ही आ जाती है, पर जुता उससे श्रेष्ठ है 

मैं‌ अमजद, कादर,युसुफ खान होता 

या शाहरुख, आमिर, सलमान होता

जिनकी दिल जीतने वाली अदाकारी का

हर शख्स दीवाना है 


मै जहीर, शामी, पठान होता 

 जिनके दिलो मे भारत वसता है

या होता आजम जैंसा गली का गुन्डा 

जिसके दिल में पाकिस्तान वसा है 

मैं जो भी होता पर एक इन्सान होता 

और‌ मै एक ईन्सान ही हूँ और बहुत खुश हूँ 

पर मेरी सारी खुशियाँ पतझड़ में पैड़ से गिरे

सूखे पत्तो का ढैर बनकर रह गई

इस ऊँच नीच वाली दुष्ट आँधी ने 

उस ढैर को छिन्न भिन्न कर दिया 


और मुझे मेरे ही धर्म से पृथक कर दिया

अब मेरे ही धर्म वाले मुझे अछुत कहते है 

मानो मैं इन्सान नही कोई बिमारी हूँ

मुझे मन्दिर की धूल ना मिलती


मुझे कुए का पानी ना मिलता 

अच्छी शिक्षा मेरे लियें पाप थी 

अच्छे कपड़े और खाना मेरे लियें श्राप था 

सुन्दर दिखने पर मुझे सजा दी जाती


मेरा स्वरुप मेरा कुरुप बन चुका था 

मुझे कुर्सी से उठा दिया जाता 

मुझे स्कूल से भगा दिया जाता 

मेरा अक्श मिट रहा था जमीर घुट रहा था 


यह पीड़ादायी जिन्दगी मुझे नोच खसौट रही थी

मैं‌ अपने हक की लडा़ई लड़ना चाहता था 

पर मेरे पास शिक्षा और ज्ञान नहीं था

मेरे पास धन और बल भी नहीं था 


और तो और मेर पास कल को 

खाने के‌ लियें अनाज भी नहीं था 

मैं चतुर नहीं था चालाँक नही था  

मेरे पास थे मेरे भूखे प्यासे बच्चे 

जिनके आधे तन पर चीथड़े लटके थे 


सब्र और इश्वर की आस पर 

मेरी जिन्दगी की नाव चल रही थी 

पीढ़ी दर पीढ़ि कष्ट सहने के बाद 

मेरे भगवान कष्ट हरने को अवतरित हुए 

मेरे मसीहा बाबा अम्बेडकर साहब


उनके पास तीरो-तलवार तो ना थे 

पर उनके कलम की धार इतनी तेज थी

कि आज भी उनका लिखा हुआ पढ़कर 

दुष्टो के जमीर जख्मी हो जाते हैं 

जिनके दस हाथ ना थे चार सिर ना थे


और हाथो मे चक्र या त्रिशूल ना था 

पर थे वो मेरे भगवान ही 

जिनका रूप नया और निराला था

उन्होने दुष्टो के कष्टो को ढाल बनाया

और अपनी शिक्षा को हथियार बनाया


उन्होने रात और दिन के भैद को ना जाना

उन्होने जाति और धर्म के रोग का ना माना

जिस तरह श्री क्रष्ण और श्री राम 

अन्याय के खिलाफ कमजोरो के हित मे लड़े


उसी तरह बाबा साहब ने भी 

कभी अपना स्वार्थ ना देखा 

उनके पास सेना ना थी, पर शिक्षा थी 

उसी शिक्षा ने हमें एक पहचान दिलाई


शिक्षा से ही हमें मान मिला, सम्मान मिला 

अधिकार मिले, रोजगार मिले 

अब मैं कहीं भी जाता हूँ मुझे कोई रोकता नहीं है 

मैं कुछ भी पहनता हूँ मुझे कोई टोकता नहीं है 


उस मन्दिर के कपाट मेरे लियें खुल चुके थे 

जिसके‌ भीतर छोटी सोच रखने वाले 

कुछ धर्म अधीकारी चौकसी लगाये बैठे थे 

बाबा साहब के आने से पहले 


यह धर्म के ठेकेदार

हमारी गिनती इन्सानो मे ना करते 

पर अब मेरा कद सबके बराबर है  

अपने बच्चो को स्कूल जाते देख


उनके पूरे तन पर साफ कपड़े देख

उन्हे कुर्सी पर बैठा देख मैं बहुत खुश हूँ

मैं खुश इसलियें हूँ क्योकि मैं सिर्फ एक हिन्दू नहीं 

एक हिन्दुस्तानी हूँ, और हिन्दुस्तानी होने के नाते 


अब मेरा धर्म ईन्सानियत हो चुका है 

वही ईन्सानियत अब मैं दुसरो में ढूंडता  हूँ

पर वो कैद है बेईमानी और झूठ की कोठरी मै

जिसपर लालच का ताला पड़ा है 


जिस पर पैहरा हैवानियत कर रही है 

बुजदिली के गुप्त आँधेरे में उसका दम घुट रहा है 

इतनी बंदिशो के कारण वो मुझे दिखती ही नही 

मुझे तो अब बस ढोंग और पाखण्ड दिखता है 


इस बेतुके वक्त से मैं हाजिरेजबाव चाहता हूँ

मुझे इतना बतला दे क्या वो दौर इतना बुरा था

जिसमें पह्मलाद अधर्मी बाप की राह पर ना चल

सच्चे कर्म की राह पर वैगशील रहा 


श्रावन कुमार ने माँ बाप को 

काँधों के झुलो पर ही

हरि दर्शन करवा दिये थे  

सीता रावण की कैद मै रहकर भी 

गंगा की तरह पवित्र रहीं

या बता मुझे इस दौर की अच्छाई


जिसमें हर कोइ वासना की बाँसुरी लिये खडा 

रिश्ते और उम्र को ताक पर रख रासलीला कर रहा है 

जिसमें हर कोई धर्म की लाठी लियें खड़ा है 

और समाजरुपी भैँस को चरा रहा है 

जिसमें कुछ लोग एक विशेष पौशाक पहन


गरीबों को ठगकर नोटो के चट्टे लगा रहा है 

जिसमें सत्ता पर बैठे अधिकारियों से ज्यादा 

उनके पाले हुए कुत्तो की हुकुमत चलती है

जिसमें‌ कुछ दुष्ट अपने गटर रूपी मुँह से 


हर जगह मल का निकास और विकास करते हैं

माफ करना दोस्तों पर मैं इस दौर से खुश नहीं हूँ।


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