गोस्वामी तुलसीदास जी
गोस्वामी तुलसीदास जी
ब्राह्मण के घर जन्म लिया
उन की माता का नाम था हुलसी
पिता आत्माराम दुबे जी
जन्म से राम नाम लें तुलसी।
डील डोल में पांच बर्ष के
जन्म से बत्तीस दांत थे उनके
बारह महीने गर्भ में रहे
माँ बाप अशान्त थे उनके।
दासी के संग भेज दिया था
माँ को चिंता अनिष्ट की किसी
अनाथ हो गए पांच साल में
चुनिया दासी जब थीं चल बसीं।
नरहर्यानंद जी ने ढूँढ निकाला
अयोध्या ले गए , यज्ञोपवीत किया
राममंत्र की दीक्षा दी उन्हें
रामबोला फिर नाम रख दिया।
गुरु शिष्य गए शूकरक्षेत्र में
नरहरि ने रामचरित सुनाया
काशी पहुंचे, शेषसनातन
पंदह वर्ष उन्हें वेद पढ़ाया।
जन्मभूमि जिला चित्रकूट में
लोटे वहां और व्याह रचाया
पत्नी में आसक्ति ऐसी
संग रहते ,जैसे एक छाया।
एक दिन पत्नी मायके गयी थी
पीछे पीछे वो भी आए
पत्नी बोली ''इतनी आसक्ति
भगवन में हो तो वो तर जाए ''
बात चुभ गयी, तुंरत चल दिए
प्रयागराज में , साधु बन गए
काशी नगरी प्रस्थान किया
कागभुशुण्डि के दर्शन तब भए।
काशी में एक प्रेत ने उनको
हनुमान का पता बताया
की प्रार्थना रघुवर दर्शन की
हनुमान कहें सब प्रभु की माया।
चित्रकूट में दर्शन होंगे
राम घाट पर किया ध्यान था
घोड़े पर दो राजकुमार थे
दोनों ने लिया धनुषबाण था।
पहचान न सके तुलसीदास जी
दुखी बहुत और मन आधीर था
हनुमान ने दिया दिलासा
कल फिर होगा दर्शन रघुबीर का।
बालरूप में मांगें चन्दन
तुलसीदास फिर ना पहचानें
तोता रूप धर हनुमान जी
लग गए तब ये दोहा गाने
'' चित्रकूट के घाट पर
भई सन्तन की भीर
तुलसीदास चन्दन घिसें
तिलक देत रघुवीर ''|
अद्भुत छवि थी प्रभु राम की
दर्शन करके तृप्त हुआ मन
प्रभु ने तिलक किया माथे पर
झोली में पड़ गया राम धन।
हनुमान कहें अयोध्या जाओ
रास्ते में प्रयागराज जी
वटबृक्ष के नीचे मिल गए
याज्ञवल्क्य और ऋषि भरद्वाज जी।
काशी में एक ब्राह्मण के घर
पद्य रचना की संस्कृत में फिर
सुबह जो लिखते, संध्या मिट जाता
आठवें दिन, सपने में शंकर
बोले शंकर ''अयोध्या में जाओ
ग्रन्थ हिंदी में लिखना तुम अब ''
दो वर्ष और सात महीने
छब्बीस दिन में पूरा हुआ तब।
काशी मंदिर विशवनाथ में
भगवान के संग में ग्रन्थ रखा था
सुबह उठे तो उसके ऊपर
''सत्यम शिवम् सुन्दरम '' लिखा था।
पंडितों को बड़ी ईर्ष्या हुई और
करी बहुत ही निंदा साथ में
ग्रन्थ नष्ट करने को भेजे
कुटिया में दो चोर रात में।
चोरों ने देखा दो वीर वहां पर
दे रहे थे कुटिया पर पहरा
चोरी छोड़ भजन में लग गए
प्रभु भक्ति का असर था गहरा।
टोडरमल के पास फिर रख दी
रामचरित की वो प्रति पहली
और कई प्रतियां लिख डालीं
उन की थी एक अलग ही शैली।
पंडितों ने समीक्षा करने
श्री मधुसूदन जी को बुलाया
वो बोले ''श्रेष्ठ ग्रन्थ है''
प्रशंसा करके सबको चौंकाया।
विशवनाथ के पास रखा ग्रन्थ
फिर भी न माने पंडित जब
सबसे नीचे रामचरितमानस
शास्त्र ,वेद उसके ऊपर सब।
सुबह खुला मंदिर तब देखा
रामचरित सबसे ऊपर था
क्षमा याचना मांगें पंडित
तुलसी के पग में उनका सर था।
आखरी समय थे अस्सी घाट पर
हर पल मुख पर श्री प्रभु राम
उसी घाट पर शरीर छोड़ दिया
चले गए वो प्रभु के धाम।
पूरी राम कथा एक ग्रन्थ में
दुनिया को ये प्रेरणा देता
शत शत नमन श्री तुलसीदास को
रामचरितमानस के रचियता।