STORYMIRROR

YOGESHWAR DAYAL Mathur

Abstract Inspirational

4  

YOGESHWAR DAYAL Mathur

Abstract Inspirational

मुलम्मा

मुलम्मा

1 min
606


मुलम्मा चढ़ा था ग़ुरूर का 

सराबोर थे मग़रूर से 

अल्फ़ाज़ों में गुस्ताखी थी

ज़ुबान भी काफी ग़ाफ़िल थी

पैर जमीं पर नहीं टिकते थे 

ऊंची उड़ानें भरते थे


उम्र ने हमें झिंझोड़ा था

मुलम्मा ग़ुरूर का उतर गया

जो ज़हन ग़ुरूर से आतिश था

अब वो साये से भी ठंडा था

नज़रिया हमारा बदला था

ज़मीर हमारा समझ गया 


बुज़ुर्ग आँखों से जब देखा 

सब कुछ बदला नज़र आया

जहाँ सब्ज़बाग लगाते थे 

बाग़ीचे अब वो बंजर हुए 

अभिमान से बोला करते थे

वो अंदाज़ अब काफूर हुआ 


जो ओछे छोटे लगते थे 

उन सबका एहतराम किया

जो रिश्ते हमसे टूटे थे 

उन सबसे नाता जोड़ लिया

जिन लोगों से हम कतराते थे 

उनका साथ तस्लीम किया


उधड़े रिश्ते जो जोड़े थे

उनपर पैबंद दिखाई दिए

ग़फ़लत में जो जख़्म दिए

वो ज़ख्म नहीं भर पाए थे 

खामियां औरों में देखी थीं

सारी खुद में नज़र आईं


सफर में जब मुड़कर देखा 

अपने को हमने तनहा पाया

रवैये ने सबको दूर किया

सोचकर दिल मायूस हुआ  


मुलम्मा ग़ुरूर का चढ़ता है 

इंसानियत बदनुमा हो जाती है 

जो इस से बच जाता है 

वो प्यारा इनसान कहलाता है 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract