लॉक डाउन के लम्हे
लॉक डाउन के लम्हे
फ़िक्र का अहसास था ज़हन पर हमारे
इन स्याह लोक डाउन के लम्हों में
हम दोनों घर में अकेले ही बंद हो जाएंगे
अब हमारे अज़ीज़ भी हमसे दूर हो जाएंगे
और हमारी सोसायटी मैं अंदर नहीं आ पाएंगे।
वह हमारी कोई मदद नहीं कर पाएंगे
और हम दोनों अकेले ही पड़ जाएंगे
पता नहीं क्यों ज़हन में बदगुमानी थी
ग़ैरों से उनकी अपनाइयत सोचते रहे
यहां अब हमारा क्या होगा ?
पर सोसायटी के लोगों ने ऐसा हरगिज
नहीं होने दिया
इस आशियाने में खूबसूरत लोग तो
पहले से थे
पर इस खूबसूरती का मंज़र हमें
इन लम्हों में निखर कर नजर आया
हर तरफ फोन पर हमारी खैरियत पूछने वाले थे
और ज़रूरत का सामान लाने वाले थे
शर्मिंदगी हुई अपने उस तंग नज़रिए पर, सोचकर
जब हमें यहां कोई बेगाना नज़र ही नहीं आया
और आप सब हमारे खेरखवाह ही निकले।
बहुत अच्छा लगा यह जानकर कि
हम अकेले कभी भी नहीं थे।
यह सिर्फ हमारी ग़लतफहमी ही थी।
हम जानते है कोरोना का प्रकोप तो
आज कल में दफा हो जाएगा।
पर हमारे मन में उनका ओहदा
और भी ऊंचा हो जाएगा।
शुक्रों को शुक्रिया अदा करने की
फ़ेहरिस्त लंबी है
और ऐसा करने पर उनका कद छोटा हो जाएगा
अलबत्ता हम उनके लिए और उनके
परिवारों के लिए रब से दुआओं की गुज़ारिश करते हैं।
और दिल और जान से उनकी तारीफ करते हैं।