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YOGESHWAR DAYAL Mathur

Others

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YOGESHWAR DAYAL Mathur

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नुक्कड़

नुक्कड़

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दोस्त जमा हो जाते थे

रौनक खूूब लग जाती थी 

छोटे बड़ों का फर्क न था

तवज्जो सबको मिल जाती थी

सब अपनी अपनी कहते थे

गप शप थोड़ी हो जाती थी

मिर्च मसालों में लिपटी

खबरें सारी मिल जाती थीं 

पूस के ठन्डे मौसम में

कुल्हड़ की चाय पी जाती थी

जरूरत किसी की पड़ने पर 

सब भागे दौड़े जाते थे

किसी बुजुर्ग को आता देख

सिर अदब से झुक जाते थे

पहुंचे हम सालों बाद वहां 

वो नुक्कड़ अब बे रौनक था

शोर शराबा जो हमसे था 

वहां आज गहरा सन्नाटा था

गलियां पहले जो सकरी थीं 

पक्की चौड़ी सड़क बानी

ईंटों के कच्चे घर जो थे

पक्के मकानों से आबाद हुए

वहां की सब्जी मंडी भी

अनाज का खलिहान बनी

कुल्हड़ वाली कुटिया अब

मिठाइ की दुकान बनी

दुआ सलाम हो जाती थी 

वहां आज हम बेगाने थे

बचपन की बिखरी यादों का

वहां कोई नामों निशान न था

नुक्कड़ जो हमसे रौशन था

वक्त की तपिश से झुलस गया

लड़कपन की सुंदर यादों का

नुक्कड़ न जाने कहां दफन हुआ.


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