मौसम
मौसम
मशगूल थे शोर शराबे में
दिन भी छोटे पड़ जाते थे
जिंदगी के उन जलसों से
कोसों दूर निकल आए हैं
अब महरूमियत का मौसम है
पल भी दिन बन जाते हैं
ख़ामोशी से परहेज़ नहीं
पर तन्हाई बहुत अखरती है।
मशगूल थे शोर शराबे में
दिन भी छोटे पड़ जाते थे
जिंदगी के उन जलसों से
कोसों दूर निकल आए हैं
अब महरूमियत का मौसम है
पल भी दिन बन जाते हैं
ख़ामोशी से परहेज़ नहीं
पर तन्हाई बहुत अखरती है।