गंगा माँ की महिमा
गंगा माँ की महिमा
मैं जननी हूँ, मैं जीवनदायी हूँ, धरती पर माँ का प्रबल स्वरूप हूँ,
नदियों में सर्वश्रेष्ठ, हिमालय की गोद से जन्मी, मैं गंगा हूँ।
शक्तिशाली इतनी की ऋषिकेश से लेकर हरिद्वार तक, और पर्वतों से मैदान तक मेरा उद्वेग व गति असीम है,
शिवजी की जटा में समायी, मैं वंदनीय हूँ, मैं पूजनीय हूँ, मैं गंगा हूँ।
परम शान्ति पा लेते जन मेरे तट पर पूजा-अर्चना करके,
विषम परिस्थितियों से पार पा लेते सच्चे हृदय से स्तुति करके।
मैल धोया असंख्य पापियों का, बहुतों का उद्धार कर चुकी हूँ,
स्वयं पतित पावनी थी पहले भी और आज भी पतित-पावनी हूँ।
भीष्म जैसे महा-योद्धा की जन्मदात्री हूँ जो पितामाह हैं सभी के,
हरिद्वार से ऋषिकेश तक आरती करते ऋषि मेरे तट पे।
मात्र जल-धारा नहीं, मैं जीवन का आधार हूँ,
प्रख्यात गायकों ने सृजन किया सुरमई गंगा आरतियों का, मैं सभी की माँ हूँ।
जंगली वन-प्रजाति और सरल-सभ्य समाज को बिना भेदभाव के संवारा है,
अपरम्पार है मेरी महिमा, अलौकिक मेरा तेज़, मुझमें मातृत्व का अतुल्य भण्डार समाया है।
समस्त विश्व मेरी स्वछता की करता नित-दिन व्याख्या व वर्णन,
मेरे समक्ष आ कर तो नास्तिक भी स्वतः ही न्योछावर कर देते हैं सर्वस्व।
पारंगत व प्रख्यात गायकों ने अपने सुरों के माध्यम से मेरी कीर्ति का गुणगान किया है,
असंख्य खेतों को सींचा, विपदाओं को हर लिया, मैंने लाखों का बेड़ा पार किया है।
यूँ तो लाखों है नदियाँ सम्पूर्ण संसार में, पर पार मेरा ना पा सकी कोई है,
सम्पूर्ण सृष्टि का संहार करे, जन - जन का उद्धार करे ,
ऐसी निर्मलता व विमलता सुसज्जित धारा में मेरी है।