ग़ज़ल
ग़ज़ल
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सुरमयी रंग हैं या अगन का नशा
अजनबी संग हैं या छुअन का नशा।
रूठ गई क्यों बहारें वक्त से फ़िज़ा
रख जला कर दिलों में हुस्न का नशा।
वो कमल गुलशनों से चला टूट कर
ख़ाक में मिल गया यौवन का नशा।
भर गया मन जहाँ के दग़ा से अगर
तोड़ दो दिल क्यों हो मिलन का नशा।
ख़ाक में मिल गए जीस्त में डूबकर
अब कहाँ है दिलों में चमन का नशा।
सवि अमन चाहती है हमेशा यहाँ
ढूँढती है रगों में वतन का नशा।