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Abdul Qadir

Romance

4  

Abdul Qadir

Romance

गज़ल-5

गज़ल-5

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पहले जो था खुमार ओ खुमार आती नहीं है।         

बूढ़े दरख्त पर फिर से बहार आती नहीं है।


 पहले बुलबुले चहचाहती थी जिस साख पर।

 उस साख पर फिर से कोई आती नहीं है।


 शायद गुल में अब ओ तवानाई नहीं है।

 इसलिए अब तितली ओ बलखाती नहीं है।


 एक चोट पर मरहम जो लेकर के थे आते।

 अब दर्द का मरहम वो ले आते नहीं हैं।


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