गजल-2
गजल-2


कट रहे जंगल हमारे गर्मियाँ बढ़ने लगी।
घुल हवाओं में जहर से जिन्दगी घुटने लगी।।
कारखानों से निकल कर छा रहा नभ में धुआँ।
अम्ल - वर्षा से जमीं की उर्वरा घटने लगी।।
जीव - जन्तु पेड़ - पौधे की कमी अब हो रही।
उस प्रदूषण की समस्या से जमीं जूझने लगी।।
हो रहे पर्यावरण गन्दी हवाओं&
nbsp;का शिकार।
चहचहाती पक्षियाँ जो लुप्त अब होने लगी।।
हो रही बंजर जमीं होने लगे शोषण बहुत।
गन्दगी पानी मिले बीमारियाँ बढ़ने लगी।।
सूखने नदियाँ जलाशय पोखरें झड़ने लगे।
शुद्ध भोजन की समस्या अब तो गहराने लगी।।
आज जन -जन को जगाने की जरूरत है मयंक।
नाश होने की घड़ी संसार में दिखने लगी।।