गजल-3
गजल-3
जिस कलाई खनकती थी चूड़ियाँ।
अब उसी से बरसती हैं गोलियाँ।।
जो जली हैं सदा बनकर होलिका।
खेलती दुश्मनों से अब होलियाँ।।
जो नथुनियाँ लटकती रही नाक में।
अब पहनने लगी देश की वर्दियाँ।।
जो झनकती रही पायल पाँव में ।
कर रही रात -दिन पहरा गस्तियाँ।।
कैद घर में रहा करती थी सदा।
गाड़ियाँ अब उड़ाती हैं तितलियाँ।।
जो सजाती रही महफिल मयकदा।
अब तो छक्का छुड़ाती रण -भूमियाँ।।
जिन्स साड़ी पहनती लहँगा मयंक।
ले रही रंग केसर की पगड़ियाँ।।