ग़ज़ल....१
ग़ज़ल....१
इब्तिदा ग़र चाहिए तो इंतिहा को ढूंढिए ।
आज तन्हा मैं हुआ मेरे खुदा को ढूंढिए ।।
जिंदगी की बेखुदी का जब इशारा वो मिला ।
बेवफाई भी मिली ज़ालिम अदा को ढूंढिए ।।
चॉंद भी अब रो रहा है देख लो तुम रात में ।
देखना ग़र दर्द हो मेरी सदा को ढूंढिए ।।
जिंदगी रुसवा हुई थी जान के ही नाम पर ।
छोड़कर मेरी ख़ता उनकी ख़ता को ढूंढिए ।।
कौन खोया कौन पाया देख लो तुम प्यार में ।
फासलों के गॉंव में खुद से जुदा को ढूंढिए ।।