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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

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गजब हो गया जब हमने कह दिया

गजब हो गया जब हमने कह दिया

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गजब हो गया जब हमने कह दिया,

क्या वह गजब नहीं जो तुमने किया?

मेरे विचारों का प्रभाव पत्थर और शिला पर पड़ता है,

यह सोच कर कुछ विचारों की पोटली में गांठ बांधता हूं। 

भीषण चक्रवात में बड़े बड़े पाषाण उड़ जाते हैं,

चमकते सितारे सूरज के उगते ही छिप जाते हैं।

प्रभुत्व से औषधि संजीवनी बनता कभी संजीव है,

प्रीत के पपीहा को बरसात की एक बूंद नसीब है।

तुम देख लो जालिम बहुत कुछ हम यूं सह जाते हैं,

मिथ्या राग पसंद नहीं सत्य से हम भय नहीं खाते हैं।

हमारे कलम की हरबात अगाड़ी है,

देख भविष्य में होती नहीं पिछाड़ी है।

कर डालते हो जज़बातों के घोटाले खटकता नहीं है,

आखिर कैसे भेद छुपा रहा पता लगता नहीं है।

चार साल में सिर्फ वादों का पिछवाड़ा देखने को मिला है,

लूटने का मौका तो माल्या ललित और मोदी को मिला है।

जनता अब अंधभक्ती हटाये महंगी सरकार गिराये।

उन्हें कुचल डालो अपने पथ में जो ज्यादा बौराये।

जनता मूर्ख नहीं है पूरा देश तुमने रोटोमैक्स बना दिया है।

जनता का आगाज़ अब तुम झेल नहीं पाओगे जो किया है।


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