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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

गीतों को वरदान दे दिया

गीतों को वरदान दे दिया

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मैंने एक फूल मांगा था उसने तो उद्यान दे दिया ।

दोहे का वर मांग रहा था गीतों का वरदान दे दिया ।।


मलयानिल सा सोया था मैं सपनों के गहरे सागर में ।

लेकिन अब अहसास हुआ है सिंधु भरा उसने गागर में ।


अर्पित कर दी पूजा थाली मैं वो बड़भागी वन माली ,

लोक गीत गाने वाले को पूरा छंद विधान दे दिया ।


वो अनंत करुणा का सागर मैं गंवार मूढ़ अभिमानी ।

भू मण्डल के ओर छोर पर उससे बड़ा कौन है दानी ।


मेरी अभिलाषा थी छोटी उसकी परिभाषाएं मोटी ,

शब्दों की छोटी मूरत को छंदों का पाषाण दे दिया ।


मैं था एक अनाड़ी मानस कविता राह दिखाई उसने ।

मेरे इस नीरस जीवन में रस की चाह जगाई उसने ।


सारे जग का दर्पण उसमें सारे जग का तर्पण उसमें ,

एक गाँव की मांग रखी थी पूरा हिंदुस्तान दे दिया ।


यदि वो चाहे तो फूलों की शैया पर भी मानस रोये ।

वो चाहे तो कांटों पर भी लंबी गहरी नींद सँजोये ।


जब वो चाहे भाग्य जगा दे पानी में भी आग लगा दे ,

हलधर " जैसे देहाती को साहित्यिक सम्मान दे दिया ।



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