गीतिका
गीतिका
मुसीबत से' जो लोग लड़ते नहीं हैं ।
दुःखों से कभी वे उबरते नहीं हैं ।।
वशीभूत हैं लोग जो लोभ के वे,
कभी जिन्दगी में सँवरते नहीं हैं ।
जहाँ झूठ की हो रही हो वकालत,
वहाँ सत्य को लोग पढ़ते नहीं हैं ।
हमेशा सुखों में रहे साथ वे अब,
बुरे वक्त में साथ रहते नहीं हैं ।
घृणा-द्वेष वन में विटप एकता के,
कभी फूलते और फलते नहीं हैं ।
मिलन और व्यवहार सम्बन्ध जग से,
बिना स्वार्थ के लोग रखते नहीं हैं ।
चले धूल - अन्धड़ या' तूफान आए,
कदम हौसलों के उखड़ते नहीं हैं ।
नियति - चक्र के सामने एक दिन भी,
अहंकार - छल - छद्म टिकते नहीं हैं ।
सदा सत्य की राह पर हैं चले जो,
कभी लक्ष्य से वे भटकते नहीं हैं ।
अगर ज्ञान - दीपक जले तो कभी भी,
अँधेरे दिलों में पनपते नहीं हैं ।