गहराई हो तुम
गहराई हो तुम
मेरे कलम की,
कलाई हो तुम !
मेरे पावन सी मन की,
गहराई हो तुम !
मेरे दर्द की,
दवाई हो तुम !
मेरे ख़ुशी की,
बधाई हो तुम !
मेरे सादे लिवास की,
चमक हो तुम !
मेरे सीधे विचार की,
वृहत विकास हो तुम !
मेरे अंबर की,
अनंत आकाश हो तुम !
मेरे जमीं की,
जाग्रत सांस हो तुम !
मेरे मन की,
पहली मिठास हो तुम !
मेरे ज़िगर की,
पहली जान हो तुम !
मेरे अनंत आकाश की,
पहली उजाला हो तुम !
मेरे दिव्य दृष्टि की,
पहली परिचायक हो तुम !
अब कितना कहूं,
सब कुछ तो क़ह दिया !
तेरी तारीफ़ में,
इतना कुछ तो बोल दिया !
तुम सच मानो या झूठ,
तुझ पर छोड़ दिया !
अपनी मंजिल पे मैं,
जलता दिया लेके चल दिया !
तेरी सांसों में,
अपनी सांस भर दिया !
देखके सौंदर्य सृष्टि का,
सृष्टि के साथ चल दिया !