घर
घर
मिट्टी, पत्थर से
दरवाज़ों, दरीचों से
दीवारों, छतों से
क्या इनसे ही बन जाता है एक घर l
अगर ऐसे ही बनता होता
तो बन गए होते हजारों
तो फिर आखिर क्या है
जिससे परिभाषित कर सकें इस घर को l
हाँ वो है अमूल्य
वो है इस घर में बसने वालों के बीच
रचा बसा प्यार और विश्वास l
प्यार ही तो है नींव घर की
प्रेम ही तो है दीवार और छत
यहीं है इसके झरोखे और दरवाज़े l
