ग़ज़ल
ग़ज़ल


याद उसकी फ़क़त बहाना है
दर्द से रिश्ता जो निभाना है
कौन कहता उसे दिवाना है
दिल ज़रा उसका आशिकाना है
पोंछ देते है अश्क मेरे वो
ख्वाब ये भी बड़ा सुहाना है
वो सुनेंगे कहाँ मेरे दिल की
काम उनका तो दिल चुराना है
बांध देता है कितनी शर्तों में
इश्क का कैसा ये जताना है
कुछ तो था जो नहीं बचा मुझमें
क्यों मेरे दिल मे यूँ विराना है
मेरे ज़ज्बात कोई समझेगा
ये गुमान दिल से अब मिटाना है
झूठ के साथ जी लिए बरसों
सच से हमको नज़र मिलाना है