मुख्तलिफ हैं इस शहर की रिवायतें
मुख्तलिफ हैं इस शहर की रिवायतें
जाने कैसे यहाँ टिकते हैं लोग,
एक प्याली में भी यहाँ बिकते हैं लोग।
रोटियों की तो बात ही क्या,
यहाँ तो तंदूर में भी सकते हैं लोग।
दिलों के बीच हैं मीलों के फासले,
दिखावे को यहाँ गले मिलते हैं लोग।
हर हाथ में यहाँ ख़जर देखा,
बात बात में जाने क्यों बिगड़ते हैं लोग।
हर रोज़ होता है यहाँ नया हादसा,
फिर भी जाने क्यों यहाँ उमड़ते हैं लोग।
मुख्तलिफ हैं इस शहर की रिवायतें,
बस अपने ही सायों में सिमटते हैं लोग।