कौन न चाहे अपना बचपन जीना
कौन न चाहे अपना बचपन जीना
ज़माने की इस समझदारी ने है बचपन हमसे छीना,
मिले अगर मौका कौन न चाहे अपना बचपन जीना,
छोड़ो बचपना बड़े हो गए सबने कह कह कर बड़ा कर दिया,
पता ही न चला कब बचपन जिम्मेदारियों में बदल गया,
मन के किसी एक कोने में न जाने बचपन कहां दब गया,
बचपन की अठखेलियों ने समझदारी का दामन पकड़ लिया,
मां के आंचल से कब छूटे कब ज़माने की भीड़ में चलने लगे,
समझ ही ना आया कब बचपन के खिलौनों से हम दूर हो गए,
उंगली पकड़कर चलते थे पापा की कहीं राह न भटक जाएं हम,
एहसास ही न हुआ कब छुटी उंगली कब हम चलना सीख गए,
दोस्तों संग खेलना गली मोहल्लों में ना कोई चिंता थी जीवन में,
बिछड़े साथी छूटे खेल अब तो बस चलते हैं जिंदगी की रेस में,
बड़ों की डांट खाते थे फिर भी कितने खुश रहा करते थे हम,
अब तो न चाहते हुए भी छोटी-छोटी बातों से दुखी हो जाते हैं हम,
किस्से कहानियों से भरा बचपन हमारा दादी नानी का दुलार,
समझ ही नहीं आया कब छूटी कहानियां कब बदल गया संसार,
बारिश में कागज़ की कश्तियां बनाकर कितने खुश हो जाते हम,
बारिश तो अब भी होती है पर जाने कहां गया वो कश्तियों का मौसम,
मिट्टी में खिलता बचपन हमारा तारे गिना करते थे आसमान में,
मिट्टी भी वही है तारे भी वहीं हैं पर बचपना खो गया ज़माने में,
चाहे कितने भी बड़े हो जाएं बचपन तो सबके अंदर जिंदा रहता है,
समझदारी से मन भर जाता जब बचपन जीने को मन करता है,
हो जाए अगर कोई चमत्कार ईश्वर कहे जी लो बचपन एक बार,
शायद ही कोई ऐसा होगा जो जीना ना चाहे बचपन वाला संसार,
यह तो हुई चमत्कार की बात जो शायद संभव नहीं हो सकता है,
किंतु हमारे अंदर बैठे बचपन को बाहर ज़रूर निकाला जा सकता है,
भूल जाओ कुछ पल के लिए कि तुम समझदार हो जिम्मेदार हो,
बच्चों के साथ बच्चा बन जाओ मानो बचपन का यह संसार हो,
बच्चों के संग खेलो अपने बचपन के खेल रंग जाओ उनके रंग में,
फिर देखो कैसे बचपन का वो ज़माना लौट आता है जीवन में,
अंत में बस इतना है कहना अपने अंदर के बचपन को कभी न मरने देना,
क्योंकि मौका अगर मिले तो हर कोई चाहेगा बचपन का जीवन जीना।।