कागज
कागज
कागज का हर एक टुकड़ा
कई रूपों में दिखता है
कुछ नहीं कहता कोरा कागज
पर बहुत कुछ कह जाता है
जब उस पर कुछ लिख छप जाता है
एक मुद्रा का रूप है धरता
भोग विलास का साधन है बनता
लोग इसके पीछे यूं हैं डोलते
जैसे कि भगवान बन जाता
कभी ये धार्मिक ग्रंथ बन
पूजा घर की शोभा बढ़ाता
कभी यह अखबार बन कर
एक दिन की अहमियत पाता
कभी रफ सा पेपर बनकर
कूड़ेदान में है चला जाता
कभी जो बेहतरीन उसपर लिखा जाता
वो संभाल कर रख दिया जाता
कभी दुख भरे लम्हों को
शोक समाचार बनकर पहुंचाता
कभी सुख का संदेशा बन
लोगों को खुशी दे जाता
इन कागजों पर अदालत भी है चलता
दुनिया भर का फैसला इन पर ही टिकता
कभी न्यायालय का फरमान बन जाता
कई विवादों का समाधान बन आता
कभी दुख की पीड़ा है बनता
कभी बन जाता दिल का मरहम
कभी झगड़े की फसाद है बनता
कभी सुलह का कारण
घर ज़मीं कागज है छीन लेता
कभी ऑंखों की नमी है पोंछता
हर जगह लाजमी यह कागज
जैसे घर का इंसान हो कागज
कभी रिश्तों का गवाह है बनता
तों कभी तलाक का गुनाह बन जाता
जीनें मरने की इजाजत भी देता
रोजमर्रा की जरूरत भी होता
कभी मित्र कभी शत्रु का रूप बनता
कभी जन्म मरण का पत्री बन जाता
जीवन की हर दशा में दिखता
शायद सब की पहचान है होता
बारिशों में नाव भी बन जाता
सर्दियों में उलाव बन तपाता
आसमां में बन पतंग उड़ता
कभी दुनिया का जंग बन जाता
कुछ भी नहीं पर सबकुछ है
क्या अजब सी चीज है
यूं तों खुद में एक माया है
इसे कोई समझ ना पाया है!