STORYMIRROR

Palak Ranpura

Abstract

4  

Palak Ranpura

Abstract

एक शख्स था

एक शख्स था

2 mins
481

एक शख्स था जिसे अपने राज़ बता रही थी,

बिन मांगे ही अपनी जान उसपे लूटा रही थी।

खुद से अनकही बाते मैं उसे बता रही थी,

डर तो नहीं लगता मुझे रातो में,

फिर भी उसके साथ रात बिता रही थी।


सुना था बचपन से जो वो सच मान रही थी,

कि पहली नज़र में देखते ही

दिल की धड़कने तेज चल रही थी।

चार दिवारी से ही लगाव था मुझे,

फिर भी उसके साथ शाम तलक घूम रही थी,

एक शख्स था जिसे अपने राज़ बता रही थी।


उसके ख़्वाब देख कर जाग रही थी,

उसकी आशिक़ी में चूर चूर हो रही थी।

लकीरें समझ तो नहीं आती मुझे,

फिर भी उसके हाथो में अपना नाम धुंड रही थी,

एक शख्स था जिसे अपने राज़ बता रही थी।


(फिर एक मोड़ आया...जब उस

लड़की को धोखे का एहसास हुआ।)


धुंधली नज़रों से महल बना रही थी,

चौत लगे हाथो से बिस्तर सजा रही थी।

वैसे तो सब बिखरने वाला था एक दिन,

इस आइने से खुदको चुपा रही थी,

एक शख्स था जिसे अपने राज़ बता रही थी।

मगर अब जा के उसे मै पहचान रही थी।


उसके झूठ को उसकी वफाई मान रही थी,

सच्चाई जानते हुए भी अपने दिल को बहला रही थी,

की शायद मुझे ही कोई गलत फहमी हो रही हैं,

मगर सच को गलत होने की बात मंजूर कहा हो रही थी,

एक शख्स था जिसे अपने राज़ बता रही थी,

मगर अब जा के उसे मै पहचान रही थी।


भरे बाज़ार में बदनाम हो रही थी,

उस एक के लिऐ बाकी सारे रिश्ते दाव पर लगी रही थी।

मगर अब ओर नहीं, ये ठान चुकी थी,

जो आज किसिका ओर कल किसी ओर का,

उस बेवफा रास्ते से अपने कदम मोड़ रही थी,

एक शख्स था जिसे अब मै पहचान चुकी थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract