लिख रही हूँ
लिख रही हूँ
लिख रही हूँ,
कुछ खयालों को मुकम्मल करने,
दास्तान-ऐ-दिल बयान करने।
लिख रही हूँ,
अपने अंतर्मन से गुफ्तगू करने,
शब्दों में अपना दीदार करने।
लिख रही हूँ ,
खुद को तराशने,
नए कारवां का आगाज़ करने।
लिख रही हूँ,
नीली चादर से तारे चुराने,
लाकर फिर अपने बिस्तर पर सजाने।
लिख रही हूँ,
जज्बातों के तार सुलझाने,
बंजर कागज पर स्याही बरसाने।
लिख रही हूँ ,
सुलगती राहों पर बर्फ बिछाने,
जूठे समाज से चिलमन हटाने।
लिख रही हूँ,
तमाम तिशनगी बुझाने,
मीठी सी बोली को कड़वी ज़ुबान पर रखने।
लिख रही हूँ ,
कलम को अपनी उल्फत दिखलाने,
किस्मत से मिले कद्रदानों का दिल जीतने।
