ग़ज़ल - जब भूख लगती
ग़ज़ल - जब भूख लगती
जब भूख लगती आदमी सब कुछ हटाता इक तरफ़।
सारी ख़ुदाई इक तरफ रोटी का टुकड़ा इक तरफ़।
दो भाइयों ने बाँट ली हर चीज़ जो भी घर में थी।
बीमार अब्बा इक तरफ़ कमज़ोर अम्मा इक तरफ़।
कह दो नहीं बिकता कभी जो हिन्द दिल में है रखे,
दौलत जहाँ की इक तरफ़ जज़्बा वतन का इक तरफ़।
अर्जुन सुयोधन से कहा भगवान ने तुम माँग लो,
सेना बड़ी है इक तरफ़ और मैं निहत्था इक तरफ़।
मैं क्या चुनूँ संसार में मुश्किल बड़ा है फैसला,
मेरी मोहब्बत इक तरफ़ मेरी विवशता इक तरफ़।