विकासशील क्षेत्रों की समस्याएं
विकासशील क्षेत्रों की समस्याएं
इस जग में होते हैं सुख-दुख तो
अभिन्न अंग हर मानव जीवन के
टिकते न बारी-बारी ठहर-ठहर के
ये तो हर एक के जीवन में आएं-जाएं।
इस सकल जगत में समस्या रहित
नहीं होता है किसी का भी जीवन
अक्सर ही तो बदलते रहते हैं हालात
जिनके साथ बदलती रहती हैं समस्याएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
सक्षम और सबलों के तोआगे
कोई बाधाएं हैं टिक नहीं पातीं
जिसमें साहस-धैर्य-नैतिक बल है
ऐसे उद्यमी को हैं शीश झुकातीं।
किसी कारण जो विकास में पिछड़ गये
औरों के संग-संग जो बढ़ नहीं पाए।
समय के मारे हुए ऐसे जनों को
बहु बाधाएं बहुविधि बहुत सताएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
शिक्षा-स्वास्थ्य समझ का बुरा हाल
विकास पथ में लाता है अगणित बाधाएं।
समाज-संस्कृति-चरित्र-पर्यावरण
रहते सतत् बिगड़ते सुधर न पाएं।
बढ़ती जाती जनता बिना नियंत्रण
अनवरत घटती जाती हैं सुविधाएं।
अर्थाभाव प्रमुख बेड़ी विकास की
जिससे वे आगे की ओर बढ़ न पाएं।
अशिक्षित प्रायः ठगे हैं जाते धूर्तो द्वारा
असफल हो जाती हैं शासकीय योजनाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
अविकसित आधार-भूत ढांचा
दे नहीं पाता है सबको रोजगार।
उत्तम स्वास्थ्य-शिक्षा-निवास हित
होती सबके लिए धन की है दरकार।
जरूरी जरूरतें भी तो पूरी न हो पातीं
बिना समझ के प्रायः होते हैं बड़े परिवार
पचासी प्रतिशत धन रास्ते में है लूटा जाता
सेवक और शासक अंधे-गूंगे बन जाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
स्वास्थ्य- खराब शिक्षा का अभाव है
लेकिन कई अनपढ़ भी डिग्री वाले हैं।
डिग्री वाले मजदूरी करने से शर्माते हैं
फिर ये करते ठगी अपराध निराले हैं।
माफिया-नेता-अफसर मिल जुलकर
नित लूट मचाते और करते नये घोटाले हैं
निर्बल ही तो ठगे और लूटे जाते हैं
वे ही भरें बहु टैक्स और सहें यातनाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
मलिन बस्तियों में निर्धन लोग हैं रहते
है बड़ा बुरा हाल इनकी तंदुरुस्ती का
दमघोंटू हवा सांस को और दूषित पानी
सीलन भरा माहौल है झुग्गी-बस्ती का।
बच्चे पढ़ते नहीं-नशे में फंस जाते और
अपने तन-मन-धन का नाश हैं करते
कंकरीट के ढांचे बनते काट कर जंगल
अनेक ही "ऊष्म द्वीप" नगरों में बनाए।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
शिक्षा-स्वास्थ्य -आवास का यह बुरा हाल
इन नागरिकों में लाता है अगणित बाधाएं।
समाज-संस्कृति-पर्यावरण और वित्तीय हाल
रहते हैं अनवरत बिगड़ते सुधर न पाएं।
बढ़ती जनसंख्या है बिना ही नियोजन
आनुपातिक घटती जाती हैं सुविधाएं।
अर्थाभाव बन जाता है बेड़ी विकास की
जिससे प्रगति पथ पर आगे बढ़ नहीं पाएं।
अशिक्षित तो ठगे जाते बिचौलियों के द्वारा
असफल होती हैं अक्सर अधिकांश योजनाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
अविकसित या अल्पविकसित आधार-भूत ढांचा
दे ही नहीं है सकता सबको नियमित रूप से रोजगार।
सबको उत्तम स्वास्थ्य-शिक्षा-निवास-जीविका के हित
होती है काफी मात्रा में इसके लिए धन की है दरकार।
जरूरी जरूरतें भी न हो पातीं पूरी ऐसे क्षेत्र के लोगों की
क्योंकि नियोजन के अभाव में है होता वृहद सा परिवार।
पचासी प्रतिशत रास्ते में खो जाता जनता को भेजा धन
लेकर अपना हिस्सा शासक फिर अंधे-गूंगे बन जाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
स्वास्थ्य खराब स्वास्थ्य-शिक्षा के अभाव में
शिक्षा अव्यवस्था से अनपढ़ भी डिग्री वाले हैं
तथाकथित युवा ऐसे मजदूरी करने से शर्माते हैं
इनमें बहुत से हैं करते ठगी -अपराध निराले हैं।
माफिया-नेता-अफसर मिल जुलकर के ही
ज़मीर बेच निज करते रहते नये घोटाले हैं।
बोले- भाले और निर्बल ठगे और लूटे जाते हैं
जनता भरती बहु टैक्स और सहती यातनाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
गांवों का आधारभूत ढांचा दृढ़ करके
गांव के पलायन को रोकें शहरों की ओर।
रोजगारपरक शिक्षा और समझ दे करके
कल्याण हेतु छोटे परिवार पर देवें जोर।
नहीं वोट दें नोट से सदा समझ से देकर
शिकार न बना पाए कोई ठग या चोर।
पर्यावरण सुधारें संरक्षित करके प्रकृति
विकासशील क्षेत्रों को विकसित क्षेत्र बनाएं।
हो चुके जो विकसित उनकी तो अलग हैं
पर विकासशील क्षेत्रों की अपार समस्याएं।
