महिला शसक्तीकरण
महिला शसक्तीकरण
1-नारी है, तू नारी है, तू नारी है
दुनिया तुझ पे वारी है, वारी है।।
तुझसे दुनिया सारी है, दुनिया सारी है।।
शक्ति की देवी ममता की माता है जननी नारी है।।
तू प्रेम सरोवर है क्रोध में अंगारी है
चपला, चंचल बाला सुकुमारी है।।
देवों की देवी, देव शक्ति अधिष्ठात्री
रिश्तों की जननी बिटिया तू दुलारी है।।
छाया माया सत्य सत्कारी है
बहन भगिनी माँ बेटी रिश्तों की
मर्यादा, गरिमा, महिमा संचारी है।।
क्षमा, दया की सागर अमृत की
गागर युग मर्म संसारी है।।
तेरे होने से दुनिया ये सारी है
अन्याय भी सहती समाज का
संयम धैर्य को धारण जग कल्याणी है।।
कोमल हृदय तुम्हारा
पहुँचाए कोई हानि अतिसय
करुणा कर दे देती क्षमा।
यदि कोई मर्यादा की सीमाएं
देता लांघ काल अवतारी है।।
कोमल कली किसलय तेरे
रूप जब कोई करता दुःसाहस
प्रयास पुरुष प्रधान समाज
कमजोरी लाचारी है।।
बेबस दिन हीन लाचार यदि तू
युग पथभ्रष्ट लज्जित लाज कलंक
कलंकित दुनिया सारी है।।
तेरे संग जब हो अत्याचार
मच जाता हाहाकार तेरी हाय
हद में जल जाता पुरुष प्रधान समाज।।
मरता समाज का अहंकार मृत्यु तू
महाकाल रणचण्डी काली है।।
2--बेटी और नारी स्त्री औरत
नन्ही परी की किलकारी
गूंजे घर मन आँगना।।
कहता कोई गृहलक्ष्मी
आयी घर आँगन की गहना।।
बेटी आज बराबर बेटों के।
अंतर कभी ना करना।।
बेटी बेटा एक सामान
बेटी बेटों की परवरिश
दो आँखों से ना करना।।
पढ़ती बेटी बढ़ती बेटी का रहना
अभिमान सदा ही करना।।
शिक्षित बेटी सक्षम बेटी
परिवार समाज के संस्कार
का आभूषण का रहना।।
बेटियां हर विधा ,हर क्षेत्र में
आगे बढ़ती ।।
दुनिया
शिक्षित सभ्य समाज फिर भी
बेटी को संसय भय में पड़ता
है जीना।।
माँ बाप सुबह शाम ईश्वर से
करते प्रार्थना ।।
विद्यालय से सकुशल वापस
आ जाए बेटी तो कहते शुभ
दिन है अपना।।
नगर गली चौराहे पे नर भक्षी
पिशाच।।
गिद्ध दृष्टि से कब
कर दे दानवता का नंगा नाच
बेटी का मुश्किल हो
जाए जीना।।
बेटी अनमोल रत्न है जजनी
मानव की नारी की कली कोमल।
आवारा भौरों का संस्कार से क्या
लेना देना।
समाज को शर्मसार कर देते
बेटी नारी मर्यादा का तार तार
करते मुश्किल हो जाता जीना
मरना।।
पुरुष समाज के अहंकार
विकृत होता समाज।
टूट जाती मर्यादाये मिट जाता
लोक लाज।।
मानवता की पीड़ी में कहीं कभी
दानवता की सुनाई दे जाती पद
चाप।।
बेटी नारी की जिम्मेदारी
एहसास ।।
बेटी शक्ति स्वरूप नारी
विराट रूप।।
बेटी सक्षम शिक्षित नारी
समाज राष्ट्र की गौरव मान।।
3 --वर्तमान का परिवेश और बेटी नारी
विकसित होते पल प्रहर
समाज संस्कार पर प्रश्न
अनेकों ।।
शिक्षा मर्यादा संस्कार का
आधार ।
आवारा भौरों की शक्ल में
नर भक्षी और शैतान ।।
आवारा भौरों को आकर्षित
करता वर्तमान का परिवेश
समाज।।
दुःशासन क्या खिंचेगा चिर
वस्त्र नहीं पूरे तन पे पाश्चात्य
श्रृंगार।।
शूर्पनखा के कारण हुआ था
राम रावण का भीषण संग्राम।।
शूर्पनखा अब फैसन है
रावण जैसा भाई नहीं है आज।।
कृष्णा किसकी लाज बचाये
बचा नहीं अब लोक लाज।।
बेटी की अस्मत इज़्ज़त
सुरक्षित नहीं अब घर में
रिश्तों की मर्यादा पल प्रहर टूटती
भय दहशत में बेटी पल पल
पल घुटती मरती।।
घर बाहर चारों और बेटी
नहीं सुरक्षित।।
दोष सनाज का बेटी बेटों
की हया लाज अब छुटी।।
बेटी नारी नव दुर्गा अवतारी
दुष्ट दलन की दुर्गा काली।।
बेटी बेटों में हो सभ्यता
की समझदारी ।।
नकल
नहीं किसी की अपनी
पहचान की हो बेटी नारी।।
पुरुष समाज में दलित
दासता की ना हो बेटी
नारी मारी।।
बेटी की जाती धर्म मात्र
शिक्षा सक्षम मजबूत इरादों दूर दृष्टि
की बेटी नारी।।
4--नारी के रुप अनेक
नारी के रुप अनेकों
नारी से नश्वर संसार
नारी शक्ति से अर्धनारीश्वर भगवान।।
नारी की महिमा अपरंपार
देव ना पावे पार मानव की
क्या बिसात।।
बेटी बढती पढ़ती नारी का
बचपन बेटी ही बहन माँ भगिनी
अर्धाग्नि रिश्तों का संसार।।
पुरुष प्रधान समाज मे नारी
पर होते अत्याचार
चाहे बचपन की बेटी हो या
युवा पल प्रहर भयाक्रांत।।
सत्य यह भी बेटी नारी स्त्री
पर जो भी होते अत्याचार
बेटी नारी स्त्री की होती
बराबर की हिस्सेदार।।
बेटी कोख में मारी जाती
होती नारी की ही कोख।।
कभी सहमति कभी असहमति
कन्या भ्रूण की हत्याएं किस
किस पर दे दोष।।
दहेज का दानव बेटियों
की बलि चढ़ाता माँ बाप
को कायर कमजोर बनाता।।
तब भी एक नारी होती
सासु माँ माँ के संबंधों
में भय भयंकर भारी होती।।
बेटी अबला नारी असहाय
दुख पीड़ा की मारी होती।।
अंधी गलियों की बेगम रानी
नारी दूजे नारी की दहशत दंश
दर्द की हिस्सेदारी होती।।
जिस्म फरोसी के धंधे की ठग
ठगनी नारी होती।।
बेटी नारी की दुर्दशा में नारी
पुरुषों की बराबर की भागीदारी होती।।
बिन नारी के सहमति से नहीं ताकत
पुरुषों में नारी बेटी का अपमान हो संभव।।
लोहे को लोहा ही कटता नारी नारी
की आरी होती।।
