Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

MANAS LUKHEY

Action Tragedy

1.3  

MANAS LUKHEY

Action Tragedy

शहादत का सम्मान

शहादत का सम्मान

3 mins
14.4K



हम बैठे थे चर्चा में थे, मुद्दा छिड़ा छब्बीस ग्यारह

हाँ वही छब्बीस ग्यारह , जब दिन में छाया था अँधियारा


जब देवभूमि पर हमला करने, दुश्मन चुपके से आया था

था नाविक से बीड़ा छीना, समुद्र मार्ग अपनाया था


जब निर्दोषों की हत्या कर आतंकी त्यौहार मनाया था

मौका परस्त ने मौका पा, फिर कपट व्यवहार दिखाया था


जैसे ही पाँव धरे होंगे, इस दिव्य धरा के द्वारे पर

सच मानों उसी क्षण उसने ,उसकी माँ को लजाया था


चूक हुई थी उस दिन हमसे, क्यूँ दुश्मन को पहचाना न ?

गर सीमा पार प्राण हर लेते, भुगतना पड़ता हर्जाना न


उन दस हत्यारों ने तीन दिवस में बारह जगहों पर विध्वंश किया

ताज ओबेराय सी एस टी छोडो, कामा हॉस्पिटल में भी रक्त पिया


तीन सौ आठ किये थे घायल, एक सौ चौसठ का जीवन छीना

तब नेत्र सजल थे भारत माँ के, रक्त रंजित था सीना


जब रोम-रोम में सिहरन थी, वीरों का खून भी खौला था

जो शहीद हुए उन देशभक्तों को, जीवन का कोई मोल न था


सिर पर कफ़न बाँध उतरे थे लड़ने इस संग्राम में

बोले जितनी गोली पास है माँ, मैं भर दूंगा शैतान में


जब तक जान हृदय में है, तेरा मस्तक नहीं झुकने दूंगा

जो इन दुष्टों का सिर न काटूँ, संग्राम नहीं रुकने दूंगा


पूरे अठरह हुए शहीद, लिए देशभक्ति की आन को

न हिन्दू, न मुस्लिम, न सिख-ईसाई बस भारत के सम्मान को


किसका किसका नाम गिनाऊँ, वीरों का कोई नाम नहीं

जिनकी छाती धधके जब भी उच्चारे ‘जय हिन्द’ काम यही


जिन्होंने कर्म को आगे रखा, छोड़ धर्मों के उन्वान को

भारत माँ भी पुलकित है उन पर, गर्व है हिंदुस्तान को


इन दर्दीली बातों से, मेरे मित्र का दिल दहल गया

अपना लम्बा मौन तोङ आँखों से सब कुछ बोल गया


पूछा मैंने, पूछा सबने, हे मित्र भला क्यूँ रोते हो ?

क्या हुआ क्या खोया जो अश्रु से मुख धोते हो ?


हाँ खोया है, हाँ खोया है, मानवता को हमने खोया है

हाँ रोया है , हाँ रोया है , रोम रोम मेरा रोया है


क्या इस खोखली राजनीती में अब कोई और विषय शेष नहीं

शहादत पर प्रश्न उठाते हैं, है क्या इससे बड़ा कोई क्लेश कहीं


जिन माँओं ने लल्ला खोये, खोयी जीवन की पूँजी है

वज्र पात हुआ छाती पर, चीख अम्बर तक गूँजी है


वीरांगनाएं जो जीवन भर रोती बिलखती, सूनी गलियाँ ताक रही

बालक भी वीर पिता सा बने, उसके हर आचरण आँक रही


हँसते गाते बच्चों ने खोये उनके प्यारे अनुपम पापा है

उन पर भी लाँछन, राजनीती का खेल इक नया सियापा है


दो आदेश की सबसे पहले इनकी जीभ काट धरे सैनिक

फिर देश हित में तत्पर हो हँस सौ-सौ बार मरे सैनिक


जब भी हो देश संकट में, सैनिक तन, मन, प्राण लुटाते हैं

हम इतने क्यों निर्दयी हुए, जो उन्हें इज्जत भी दे नहीं पाते हैं ?



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action