सोच नई पुरानी कुछ नहीं बदला
सोच नई पुरानी कुछ नहीं बदला


किस्से पुराने
जमाना वह पुराना था।
साधन कम थे काम ज्यादा था।
हर चीज में मेहनत लगती थी।
तो भी नहीं घबराते मेहनत करते जाते करते जाते ।
जब तक मंजिल ना पा जाते।
भले वह पढ़ाई हो भले घर के काम हो
यहां तक की चटनी भी पीसना बहुत मेहनत का काम होता था।
तो भी लोग वह करते थे।
उसी में वे खुश रहते थे।
चूल्हा सिगड़ी कोयला स्टॉव इन सब से ही काम चलाते थे।
घर में एक साइकिल हो एक स्कूटर हो एक टेलीफोन हो
तो अपने आप को अमीर समझने लग जाते थे।
और उसी में खुश रहते थे।
क्योंकि उनकी जरूरत ही सीमित और संतुष्टि का पैमाना भी छोटे होते थे। ।
कुछ अंधविश्वास करते कुछ नजर उतारते।
थोड़ी दकियानूसी सोच रखते।
फिर भी सब कुछ अच्छे थे।
जो कपड़े उस समय पहनते थे फैशन में थे।
आज घूम फिर कर थोड़ा अलग होकर वापस फैशन में वहीं आ गए हैं।
पहले चूल्हे का सिका खाते थे।
आज बारबेक्यू नेशन में जाते हैं
या ओवन में बेक करके खाते हैं ।
फिर भी वह का स्वाद नहीं आया यह बोलते हैं।
क्योंकि समय भले ही कितना ही बदल जाए
मगर इंसान की सोच बदल करके भी थोड़ी पुरानी तो हावी रहती ही है।
नए किस्से
समय नया, फैशन नया, लोग नयी सोच नयी,
तकनीकी सुविधाएं नयी
हर क्षेत्र में क्रांति आ गई।
रसोई के क्षेत्र में तो गृहिणी यों लिए के लिए मौज मस्ती आ गई ।
अब ना वह चूल्हे में खटना,
ना ना सिलबट्टे पर मसाला पिसना।
बहुत कुछ काम जल्दी और अच्छे होने लगे।
तभी नई पीढ़ी घर और बाहर दोनों संभालने लगी
।
पढ़ाई के क्षेत्र में भी आई क्रांति। कंप्यूटर लैपटॉप ने पढ़ाई
और सोच खोज सब बहुत सरल और मुहैया करा दी ।
अब इधर उधर लाइब्रेरी में फांफे नहीं मारने पड़ते।
एक क्लिक पर किताबें मिल जाती है।
चाहिए जो गूगल पर मिल जाता है। दिमाग को इतना कसना नहीं पड़ता है।
प्रतियोगिताओं का दौर बहुत बढ़ गया है।
चिकित्सा क्षेत्र में बहुत प्रगति हो गई है
हर बच्चा बहुत इंटेलिजेंट हो गया है।
दुनिया जो मुट्ठी में हो गई है ,
सब तरफ ग्लोबलाइजेशन हो गया है। जमाना बहुत अच्छा गया है।
मगर संतुष्टि कहीं चली गई है।
जहां एक साइकिल, एक स्कूटर एक फोन से खुश रहते थे।
कम पैसे में घर चलाते थे।
फिर भी सब मिलकर चलते थे।
एक दूसरे के साथ हंसी-खुशी रहते थे।
अभी सबकी अलग-अलग गाड़ियां अलग-अलग फोन,
अलग-अलग वाहन
अलग-अलग कमरे अगर फिर भी संतुष्टि ना होने से
ढगला वन पैसा होने से भी सब कम लगता है खुशी कहीं चली गई है।
संयुक्त परिवार मिट गए एकल परिवार हो गए।
मैं और मेरा परिवार बाकी सब जाए भाड़ में।
दिखावट की दुनिया से बाहर नहीं निकलना मुश्किल है।
नजर की जगह टचवुड ने ले ली।
खाली खोल बदला है पुरातन वादी सोच, अंधविश्वासी सोच
तो आज भी लोगों के दिलों में रहती है।
यह है मेरा अनुभव और यह है नई दुनिया की बात।
नहीं जानती कितने लोग सहमत हैं। मगर मेरे दिल की बात यही है।
क्योंकि मैंने चार पीढ़ी साथ में देखी है।
और सब की सोच को परखा है।
और दुनिया भी देखी है।
बताइए आप क्या सहमत है मेरी बात से।