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ANIRUDH PRAKASH

Abstract

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ANIRUDH PRAKASH

Abstract

Ghazal No. 31 कल रात ख़्वाब में एक ख़्वाब देखा

Ghazal No. 31 कल रात ख़्वाब में एक ख़्वाब देखा

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कल रात ख़्वाब में एक ख़्वाब देखा

तेरे ख़्वाब में अपना ख़्वाब देखा


कह दिया कि कल रात पी ली थी शराब ज़ियादा 

किसी ने अश्क़ों में हमारे जो शहाब(1) देखा


जुस्तुजू किसको समंदर की तह की  

हमने यहाँ तो सबको तैरते बर-आब(2) देखा


तआ'क़ुब(3) बरसों जिस का किया हमनें पकड़ते ही 

अपने हाथों में बिखरते वो ख़्वाब-ए-हबाब(4) देखा


लम्हें जिनपे सिर्फ मेरा हक़ था वो कहीं मिले ही नहीं 

करके अपनी गुज़री ज़िन्दगी का जो हिसाब देखा


मसल ना दें कहीं अहल-ए-हवस कलियों को 

बाग़बाँ को खुद उन पर डालते तेज़ाब देखा


था जो भी हराम मुक़द्दस(5) किताबों में

मुर्शिद-ए-तर्जुमानी(6) से बनते सबको सवाब देखा


चाहे रहे दूर याँ आये पास मगर चाँद को तो

पुर-सुकूँ-ए-समँदर में बस लाते इज़्तिराब(7) देखा


गुज़रे थे शायद कू-ए-जानाँ से वो 

रिंदों को आज मयकदे में बे-शराब देखा


निकले जो हो के रुसवा उसकी बज़्म से हम खुद को

जुनूँ-ओ-वहशत-ए-महफ़िल में होते बारयाब(8) देखा


बेज़ार-ए-सफर हो के की थी खुदखुशी जहाँ कश्ती ने 

उसी जगह से समंदर में अब उठता एक गिर्दाब(9) देखा


अभी तामीर हुआ भी ना था उस फ़ाख़्ते का नशेमन 

कि ऊपर चढ़ता साँप नीचे उतरता उक़ाब देखा


गिरी जो एक बूँद तेरी यादों की सहरा-ए-दिल में 

उमड़ता यहाँ हमने जज़्बात का सैलाब देखा


करना था रौशन जिन घरों को आग लगा दी उन्हीं में  

चिराग़-ए-लौ में आज हमने सियासत-ए-ताब देखा


मकाँ-ए-ख्वाइश से फ़रारी को बनाते रहे सुरंगें बहानों की इस

मसरूफ़ियत में हमने ना कभी उस मकाँ का क़नाअत-ए-बाब(10) देखा


निकले वो घर से खाली हाथ मौत के सफर में 'प्रकाश'

उम्र भर जिनको जमा करते बेशुमार अस्बाब(11) देखा


1. Dark red color

2. On the surface

3. To chase

4. Bubble of dream

5. Religious

6. Interpretation of religious head

7. Agitation

8. to be admitted

9. Vortex

10. Door of contentment

11. Luggage


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