घाटे का सौदा
घाटे का सौदा
माँ से कहने वाली कितनी बातें होती हैं ससुराल में…
लेकिन मायके आकर वह बातें पता नहीं कहाँ छुप जाती हैं…
बार बार झाँक लेती हूँ…
कभी इस कमरें में कभी उस कमरें में…
लेकिन बचपन के लुका छिपी वाले खेल की तरह वह बातें छुपी रह जाती है…
माँ की नज़रें मेरी हँसी तौलती रहती हैं…
बार बार पूछ लेती है…
कभी घुमा कर कभी फिरा कर…
लेकिन मैं माँ को कैसे कहुँ ससुराल की बातें?
जहाँ पहले दिन ही मुझे एक निश्चित मात्रा में हँसने का हुक्म मिला है…
बाहर जाने के लिए आँचल से सिर ढँकने का नाप भी मिला है…
कितना बोलना है?
कैसे बोलना है?
कब बोलना है?
इसकी भी जिम्मेदारी समझा दी गयी है…
माँ, तुम्हारी यह वाचाल और खिलखिलाती लड़की सिर्फ यहीं आकर हँस लेती है…
मेरी इस हँसी को अपनी नज़रों से मत तौलों…
इस सौदे में हुए घाटे का तुम्हे पता चल जाएगा......
