STORYMIRROR

संजय असवाल "नूतन"

Abstract

4  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract

घास काटती लड़की (घसेरि)

घास काटती लड़की (घसेरि)

1 min
351

ओ घास काटती लड़की 

ओ घसेरि!

वाह क्या भाग्य है तेरा, 

जब से पैदा हुई 

संघर्ष साथ लाई,


विकट परिस्थितियां भी

दर्द तू पहाड़ सा लाई,

फिर भी ना कोई गम तुझे 

ना चेहरे पे सिकन कोई,

निकल पड़ती है रोज सवेरे बूँण

घास पत्तियों के लिए 

हाथ में दाथुडी और रस्सियां लिए,

ऊंची नीची पथरीली पगडंडियों में

उफनते गाड गधेरों में 


जीवन मौत का खेल 

रोज़ तू खेलती ,

ओ घास काटती लड़की 

ओ घसेरि!

चलना जरा संभल कर 

इन खड़ी चट्टानों में 

जहां मौत हाथ बांधे खड़ी है 


तेरे सामने,

आगे रौल है

नीचे भ्याल है 

उतराई मे फिसलने का डर है 

तू संभल कर पांव रखना 

जिंदगी कठिन है उसका भी ध्यान रखना।


ओ घास काटती लड़की

ओ घसेरि!

यही भाग्य तेरा,

जहां पहाड़ और तेरा मन 

दोनों टूट रहें हैं धीरे धीरे,

भले संघर्षों का अंत नहीं 

पर तुझे जीना होगा 

ये पहाड़ सा जीवन

तुझे यूं ही सहना होगा,

ओ घास काटती लड़की

ओ घसेरि !


तू पहाड़ की नारी 

तू हौसला रख

नियति है ये तेरी 

तुझे इसे लेकर चलना होगा

बेशक बार बार टूटी है तू पहाड़ सी

पर ये अस्तित्व की लड़ाई है 

तेरे और पहाड़ की !


दाथुडी - घास काटने का यंत्र 

गाड गधेरों - पहाड़ी नदी,नाले 

घसेरि - घास काटने वाली स्त्री 

भ्याल - खाई 

बूँण  - घने जंगल।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract