गौरैया रानी
गौरैया रानी
सुबह सवेरे घर आंगन में
हर दिन वो आ जाती थी
छत पर बिखरे दानों को
चुन-चुन कर खाती थी।
ढेरों खिलौने थे संग मेरे
पर मन को वो ही भाती थी
पर हाथ लगाते ही मेरे
फुर्र से वो उड़ जाती थी।
फुदुक-फुदुक कर चलती वो
गीत खुशी के गाती थी
चीं-चीं-चीं-चीं कर जैसे
मुझको पास बुलाती थी।
जब भी जाता पास मैं उसके
फुर्र से वो उड़ जाती थी
छोटी सी गौरैया रानी
शायद मुझसे डर जाती थी।
सूनी हो गई पेड़ों की डाली
छत पर भी छाई है वीरानी
इंसानों ने की बड़ी नादानी
गुम हो रही गौरैया रानी।
