गाँव का आँगन
गाँव का आँगन
सूरज की सुबह की लालिमा
बिखेरती चंचल किरणों को
और बहती ये शीतल मंद हवा
एहसास दिलाती हमको
गाँव का आँगन आज भी
महकता रहता है II
आज भी उन लम्हों को तलाशते
जहाँ होते हैं मददगार सभी
एक दूजे का सुख-दुख बांट लेते
आपस में हैं रिश्तेदार सभी
गाँव का आँगन आज भी
चहकता रहता हैII
गाँव के आँगन का प्रेम
सबके मन को आनंदित करता
पगडंडियों के टेढ़े -मेढ़े रास्ते
मधुर स्वर बिखेरता है
कजरी की रातें घुंघरू की आवाज
सुनकर मन प्रफुल्लित हो जाता है
गाँव का आँगन
आज भी
पक्षियों का राग सुनाता है II
यहाँ ना कोई गलियां अनजान
ना कोई दरवाजा बंद होता है
सौंधी मिट्टी की महक तन-मन
आनंदित कर जाती है
नदिया के उस पार
धूमिल होता सूरज कुछ कहता है
क्षण -भर भी निस्वार्थ प्रेम में
यहाँ ना कोई जीता है
गाँव का आँगन आज भी
अपनेपन का एहसास दिलाता हैII
कलश में जल भरकर पनघट से
मोहक हंसी ठिठोली करती
देखती चंचल नैनों से
पायल उनकी खनकती है
साथ बैठकर बातें करते
कोकिल कंठों से मधुर स्वर वो गाती हैं
गाँव का आँगन
आज भी याद आता हैII