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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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एकांत और फुरसत

एकांत और फुरसत

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एकांत और फुर्सत

इन दोनो का मिलना बहुत ही कठिन है, इस जमाने में


सौभाग्य या दुर्भाग्य, पता नही

लेकिन बूढ़ा और रिटायर हूँ

शायद इसलिए

मिल गयी दोनो एक साथ मुझे


तो बस शुरू हो गया सिलसिला

सामने घड़ी टंगी थी

जिसकी सेकेंड की सुई लगातार चल रही थी

बाकी सुइयाँ भी चल ही रही होगी

लेकिन चलती हुई दिख तो नहीं रही थी

दिखेगी, लेकिन कुछ समय बाद, पता लगेगा

लेकिन संदेह तो बिल्कुल नहीं था

क्योंकि उनको बढाने वाली

सेकेंड की सुई तो लगातार चल रही थी


फिर ख्याल आया कि

घड़ी तो पूरा एक परिवार ही है

एक सदस्य पूरे परिवार को चला रहा है

निरंतर चल कर

फिर भी जब समय पूछा जायेगा

तब अक्सर कोई नाम नहीं आयेगा

कितने बजकर कितने मिनट हुए

प्राय: ये ही बताया जायेगा


सेकेंड की सुई का प्रयास

एक पिता के उत्तरदायित्व

जैसा समझ में आया

जो निरंतर चल रहा है, 

बिना रुके

ताकि उसका परिवार बढ सके लगातार आगे

बिना इस मोह के इसके आगे बढने मे उसका नाम

आयेगा या नहीं आयेगा


उसके प्रयासो की कीमत को कोई नहीं समझता

सब उसको चलता देखकर ही

सुकून मे रहते है कि चल तो रही है

उसकी कीमत तो बस उस दिन समझ आती है

जब उसकी खराबी या कमजोरी से पूरी घड़ी बंद हो जाती है

बस यही है एक बाप की जिंदगी का सच

और तभी फिर से

पाया दोनो सुइयाँ आगे बढ चुकी है

और सेकेंड की सुई लगातार

उनको बढाते रहने के प्रयास मे चलती ही जा रही है

बिना रुके


तो बस यही ख्याल आया

"पापा तो पापा होते है

उनके जैसा कोई नहीं।"


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