एक टुकड़ा दिल का
एक टुकड़ा दिल का
आओ साथ तुम्हें अपने,
ख्वाबों के शहर ले जाते हैं,
एक टुकड़ा अपने दिल का
तुमको भी चखाते हैं।
दूधिया कोहरे को पार कर उस सपनो,
की दुनिया की सैर करते हैं,
एक टुकड़ा अपने दिल का
तुमको भी चखाते हैं।
मुनासिब होता तो अपने सपनो को,
तुम्हारी पलकों पे बिछा दिया होता,
देख सकते तुम की इन आँखों ने
कितने अश्क छुपाये हैं।
मुनासिब होता तो अपनी धड़कन में,
तुमको बुन लिया होता।
देख सकते तुम की कितनी,
बेपनाह मोहब्बत के दीये,
हम तस्सबुर में रोज़ जलाते हैं।
नर्म बादलों पे पर पसारे,
तुम्हे उस सपनो के घर में ले चलते हैं।
हैं छुप के जिसके कोनो में हम रोज़,
तुमसे मोहब्बत फरमाते हैं।
आओ साथ तुम्हे अपने,
ख्वाबों के शहर ले जाते हैं,
एक टुकड़ा अपने दिल का
तुमको भी चखाते हैं।
सर्द हवा पे उड़ते गिरते,
तुम उस लकड़ी के पुल ले जाते हैं।
हैं काटी कितनी ही रातें जिसपे,
दामन में छुपाये तुम्हे,
उन सब शरारती लम्हों से
रूबरू तुम्हे कराते हैं।
आओ साथ तुम्हे अपने,
ख्वाबों के शहर ले जाते हैं,
एक टुकड़ा अपने दिल का
तुमको भी चखाते हैं।
जो स्वाद जुबां पे तुम्हारी,
इस ताबीर को चख के आएगा,
वह शायद मेरे दिल की कसक,
तुम तक बेपाक पहुंचाएगा।
गर पढ़ सके कुछ
पन्नों को भी तुम तो,
शुक्र खुदाई का होगा,
कभी तो दर्द देने वाला उस
चुभन को समझ पायेगा।