एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात!
एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात!
जब तुम लड़ रहे होते हो जंग देश की सीमा पर,
तब एक माँ जंग लड़ती है अपने जज़्बात से,
एक पत्नी लड़ती हैं अपने डर से,
और एक बेटी लड़ती हैं अपने सुनेहरे भविष्य के लिए;
जब-जब तुम्हारा खून बहता है,
तब-तब मेरी कलम बिलख-बिलख कर रोती हैं,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
जब कही किसी कूचे में अंधेरा छा जाता है,
तब उसी अंधेरे में ही जीते है वो ख्वाब और मेरी कलम,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात।
जिस दिन तुम अपने माँ-बाप के सपने सच करने का निश्चय कर लेते हो,
तब तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं मेरी कलम,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
जब तुम्हारे बच्चे तुम्हें ही वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं 'थोड़े दिन में वापस घर लेजाएँगे' कह कर,
तब वो घर लौटने की आस बन जाती हैं मेरी कलम,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
जिस दिन तुम्हें मोहब्बत हुई थी,
उस समय इश्क़ मेरी कलम ने भी किया था,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
जिस रात उसने छोड़ दिया था साथ,
तब तुम्हारा दिल तो टूटा ही था
और मेरी कलम भी रुक गई थी लिखते हुए उसका नाम,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
जिस रात उन भेड़ियों ने तुम्हें शिकार बनाया था,
तब रूह मेरी कलम की भी काप उठी थी,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
जब पैसों से तोला गया तुम्हारे देह को,
तब अपना मूल्य भूल गई थी मेरी कलम,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
दिसम्बर की सर्द में राहत पहुंँचाती है जो रजाई,
वही राहत बन जाती हैं मेरी कलम,
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
तुम्हारी किलकारियाँ,
तुम्हारा बचपन,
तुम्हारी पहली मोहब्बत,
तुम्हारी जवानी,
तुम्हारा बुढ़ापा,
सब बयान कर जाती हैं मेरी कलम क्योंकि एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।
हाँ, एक स्याही तुम भी हो मेरे दवात की।