एक सैनिक का पैगाम
एक सैनिक का पैगाम
मैं, मेरे देश का इक अदना सा सैनिक हूँ
कुछ अलग ही परिस्थितियों से जूझता रहता हूँ
पर कभी मैं उफ़ न करता हूँ
क्योंकि मातृभूमि का क़र्ज़ खूब समझता हूँ।
मैं बॉर्डर पर रहूँ या रहूँ बर्फीले पहाड़ों पर
बियाबां जंगलों में या तपते रेगिस्तानों पर
पर हर जगह, अपनों से मिलूंगा एक दिन,
इसी छोटी सी आस पर जीता रहता हूँ
क्योंकि मैं मातृभूमि का क़र्ज़ खूब समझता हूँ ।
घर से जब निकलता हूँ, मां की भीगी आँखें
बीवी के सिले होंठ, पिता की अदृश्य चिंता
बच्चों की वीरान आँखें, मुझे चिंता मगन कर देती हैं
पर चुपके से खून के आँसू मैं पीता हूँ
क्योंकि मैं मातृभूमि का क़र्ज़ खूब समझता हूँ
सेना की नौकरी में मैने देश भक्ति जानी है
मेरी ज़रुरत पूरी हो या ना हो
पर देश के प्रति लगन कभी न कम हो जाती है
देशद्रोहियों के कारण जब मेरा कोई साथी शहीद हो जाता है
दिल मेरा भावुक हो जाता है, पर खुद को मैं रोक लेता हूँ
क्योंकि मैं मातृभूमि का क़र्ज़ खूब समझता हूँ
मैं पहरेदार खड़ा हूँ, ए मेरे देशवासियों
तुम अपनी नींद न बर्बाद करो
सेना में जाना, थी मजबूरी मेरी या नहीं
इस चर्चा को रहने दो, तुम खुद आबाद रहो
पर ध्यान रहे,जब कभी गोली मुझे भेद कर जाये
मेरा सारा परिवार कभी सड़क पर न आये
यह छोटी सी उम्मीद बनाये रखता हूँ
क्योंकि मैं मातृभूमि का क़र्ज़ खूब समझता हूँ
देश की सेवा है, अटल धर्म मेरा
मातृभूमि का क़र्ज़ है, कर्म मेरा
देश को मैंने चुन लिया परिवार अपना छोड़कर
जो दुश्मन सर उठाएगा,रख दूँगा उसको निचोड़कर
यह मेरा है अटल एक फैसला
गर में एक चिड़िया हूँ, देश मेरा इक घोंसला
जब तक तन पर है, कायम वर्दी
पहला फ़र्ज़ रहेगा, मातृभूमि
तुमसे देशवासियों दिल से यह वादा करता हूँ
क्योंकि में मातृभूमि का क़र्ज़ निभाना चाहता हूँ