एक परिवारिक... तस्वीर
एक परिवारिक... तस्वीर
एक पुरानी............
पारिवारिक ,
तस्वीर देख कर
कितने सवाल ....,?
खडे हो जाते है।
और बिना किसी कसूर के,
इल्ज़ाम , फिर से हरे हो जाते है।
रिश्ते निभाने की ,
हमें ही सजा क्यूँ है।
बाकि तो सब ,
दामन झाड के ,
परे हो जाते है।
एक पुरानी .......
परिवारिक तस्वीर देख कर।
रिश्तों को चार दीवारी मे ,
रिसता हुआ पाता हूँ।
मै उन तमाम शब्दों को ,
बरसों से दबाये आया हूँ।
जिंदगी मे ,
जो लोग रिश्ते
संभाल नही पाते है।
वहीं लोग ,
खुद को सही ,
साबित करने के लिए
रिश्तों पर उँगलियाँ उठाते है।
सब के सामने छाती ठोक के ,
बात -बात पे लोगो के आगे ,
दुखड़ा रोकर सच्चे हो जाते है।
वहीं लोग परिवार को ,
जब अपना मानते ही नही।
तस्वीरों में मुँह बना के ,
किस मुँह से खड़े हो जाते है।
कितना भी दिखावा कर ले।
तस्वीरों में दिल में तीर -से,
चूभते ही रह जाते है।
अपने जमीर से,
ऐसे लोग ,
आँख नही मिला पाते है।
साथ खड़ा होकर भी,
तस्वीर से निकल जाते है।