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Mohd Saleem

Abstract

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Mohd Saleem

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"एक मुस्कान"

"एक मुस्कान"

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चेहरे पर नकाब के पहरे हजार,

जाने लोग कैसे निभाते हैं ऐसा किरदार,

अंतर्मन में बसी एक दिखावे की पहचान,

फिर भी अधरों पर रहती है एक मुस्कान।


हर मुस्कान का एक अलग रूप है,

जो दिखती कोमल वो अंदर से कुरूप है,

हालातों पर ठहरी एक नन्ही सी जान,

फिर भी अधरों पर रहती है एक मुस्कान।


इस युग में लोग ज़्यादा मुस्कुराते हैं,

ग़म छिपाने की आजकल कला दिखाते हैं,

हर ग़म की होती है अपनी एक पहचान,

फिर भी अधरों पर रहती है एक मुस्कान।


समय का पहिया घूम रहा है,

चहरे के रंगों को देख कर झूम रहा है,

कभी खुशी, कभी गम, कभी फितरत से अनजान,

फिर भी अधरों पर रहती है एक मुस्कान।


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