STORYMIRROR

Mohd Saleem

Abstract

4  

Mohd Saleem

Abstract

दुनिया बेनकाब है

दुनिया बेनकाब है

1 min
440

आज नकाब में दुनिया या दुनिया बेनकाब है,

बढ़ते स्तर पर महमारी बेहिसाब है,

जो थूकते फिरते थे सड़कों पर,

आज प्रकृति दिखाती उनको अपना अज़ाब है।


ये बीमारी नहीं खुदा की रजा है,

प्रकृति के हनन पर प्रकृति से दी गई वजह है,

पेड़, जानवर, अन्य प्राकृतिक संसाधनों द्वारा,

मनुष्य को दी गई एक बड़ी सजा है।


दिलों की दहशत, दिमाग में बसी है,

कोई नहीं जानता ये कैसी हंसी है,

जो रहते थे शान में वो बिस्तर में पड़े हैं,

कर्मो के कारण पैदा हुई ये बेबसी है।


जहां में जो लोग खुद को खुदा समझे बैठे,

आज घर में कैद एक कैदी बन बैठे,

जो दौलत पर घमंड कर जीवन गुजारते थे,

वो खुद आज इलाज में पैसा बहा बैठे।


में तो सिर्फ ये कह सकता हूं, ये ऐसी घडी है,

जहां इंसान बेबस, बीमारी बड़ी है,

ये बीमारी के रूप में एक ऐसा तेज़ाब है,

जिससे आज नकाब में दुनिया और दुनिया बेनकाब है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract