एक कविता बंधु के लिए
एक कविता बंधु के लिए
किसी दास्तान में उलझ पड़े हैं,
जिसे देखा नहीं कभी उस शख्स से मिलने को तरस रहे हैं,
हैं मीलों दूर पर बेकरार करती हैं,
बड़ी ही नजाकत से बात करती हैं,
कोई रिश्ता नहीं अपना पर अपनेपन के एहसास से भर देती हैं,
अपने साथ से मेरे हर पहर को यादों का घर करती हैं,
आँखों से रूबरू होना बाकी हैं,
पर उसे पाकर लगा मेरी खुशनसीबी काफी हैं,
अंजाने इस सफ़र में भरोसे का शुरुआत हुई है,
एक हसीन परी से मुलाक़ात हुई है,
अलग उसके तराने उसके सादगी का सिलसिला है,
उसी से हनुमान नाम और बंधु का पहचान मिला है,
वो सीधी सी जो ना जाने उसके लिए एक पहेली सी,
पर मुस्कुराती हैं जब भी वो,
उसकी मुस्कुराहट खिली कली सी,
मेरी उसकी अनकही दास्तान है,
अलग मंज़िल अलग रास्ता है,
पर वो बादलों के बीच चांदनी सी,
हैं अंजान पर लगती बिल्कुल जानी पहचानी सी,
जो सच्चे रिश्तें में बांधे वैसा डोर कर दिया,
उसकी मौजूदगी ने मन को विभोर कर दिया,
इस एहसास ने हमे बहुत करीब कर दिया,
सच में पी जी आपकी दोस्ती ने हमे अमीर कर दिया!