एक कलाई दो राखी (नई सोच)
एक कलाई दो राखी (नई सोच)
एक राखी बहनों के नाम की होगी,
दूसरी हर लड़की के सम्मान की होगी,
क्यों ना कुछ नया-सा रिवाज़ बनाते हैं,
चलो एक कलाई पर दो राखी बाँधते है।
नुक्कड़ पर खड़े होकर काम जिनका,
बस दुसरो की बहनों को छेड़ना है,
अकेली लड़की देखकर सड़कों पर,
जो ताने कसे और करें अवहेलना है,
एक कलाई से उस बहन की रक्षा माँगते हैं,
इस बार एक नहीं दो राखी बाँधते है।
रात को दस से पहले घर आ जाना,
अँधेरे में घर के बाहर अकेली मत जाना,
किसी को भी पलट कर जवाब मत देना,
और हर अजनबी बातों का घूंट पी लेना,
कितनी सारी बेतुकी बातें हम मानते हैं,
चलो एक कलाई पर दो राखी बाँधते है।
धागा विशवास का, ताकत इसकी गाँठ है,
बाँधे हर बहनों की रक्षा का सौगात है,
लाज बचाना उसकी जो हर घर का धन है,
त्योहार यह भाई बहन का रक्षा बंधन है,
सभी से रक्षा का नज़रिया माँगते हैं,
इस बार एक नहीं दो राखी बाँधते है।