एक ही नाव
एक ही नाव
हम खिड़की से यूं ही झांकते रहते हैं।
आप तो पढ़ते ही रहते हैं।
हम दोनों हैं एक ही नाव पर सवार,
नंबर तो दोनों के ही गिरते रहते हैं।
जब से चढ़ा है इश्क का बुखार
पढ़ाई का हो गया बंटाधार,
तुम भी तो पढ़ने बैठी हो करके सिंगार,
हल नहीं हो पता स्कूल में दोनों से एक भी सवाल।
फाइनल पेपर खड़े हैं सामने तैयार।
आओ दोनों पहले कर लेते हैं इकरार और इजहार।
फिर दोनों कभी मिलजुल के कभी अकेले कर लेंगे पढ़ाई से प्यार
न फेल होंगे दोनों और ना ही फिर घरवालों की खानी पड़ेगी मार।
