STORYMIRROR

एक ग़ज़ल

एक ग़ज़ल

1 min
14K


घर से बाहर घर जैसा आराम कहाँ

घर के अंदर घर जैसा ये नाम कहाँ

आया हूं वापिस चला जाऊंगा मैं

ये तो कह दे कि मेरा इल्जाम कहाँ

पीने का तो शौक नहीं पी लेता हूं

तुम्हारी आँखों जैसा ये जाम कहाँ

किताबें पढ़ने से क्या पा सकते हो

खुद खुद में ढूंढो की मेरी अस्काम कहाँ

चैन नहीं होता तुम्हे देखे बिना

बस प्यार यही है दूजा नाम कहाँ

जन्नत सा लगता है तेरी बाहों में

तुम्हारी बाहें बिना आराम कहाँ !!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance