प्यार भरी ग़ज़ल
प्यार भरी ग़ज़ल
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तू हसीं है मैं हसीं हूँ , रंग है ये प्यार का ,
लौट जाओ तुम यहाँ से, खेल है हकदार का ।
मौत आती है यहाँ जो , आने दो उसको इधर,
मौत का में एक लतीफा , फासला दरकार का ।
चाँदकी वो रोशनीमें , लिख रहा था कुछ मगर -
हिज्रकी वो शाम थी , आगाज़ था , वो प्यार का ।
बैर है मुझको सभी से , सब यहां खुदगर्ज़ है ,
हो चुका है मेरा मुझसे जंग-ए-तकरार का ।
चढ़ चुका है प्यार का पारा ऊपर तक,मगर-
फिर भी मुजे आरजू है अस्ल बुखार का ।