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Jagrati Verma

Abstract

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Jagrati Verma

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एक दिन

एक दिन

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सब जाहिर कर देने के बाद भी 

लगे मेरी हर बात अनकही

चलो मान लिया मैं गलत हर बार 

हर बार तुम सही

ये जज्बात भी चुप हो ही जाएंगे

अल्फाजों की तरह

एक दिन, जब महबूब को 

इनकी कदर ही नहीं!


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