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Jagrati Verma

Others

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Jagrati Verma

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खानाबदोशों सा

खानाबदोशों सा

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कि खानाबदोशों सा घूमता है हरदम

ये समन्दर सा कहीं ठहरा तो होगा

ये खाली सी आंखें चुभती बहुत हैं

इनमें हंसी ख्वाब का कभी पहरा तो होगा

ये बेचैनी, ये तल्ख़ी 

हरदम से तो न होगी

इस बे-एहसास दिल के अन्दर

ज़ख्म जरूर गहरा तो होगा


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