खानाबदोशों सा
खानाबदोशों सा
1 min
179
कि खानाबदोशों सा घूमता है हरदम
ये समन्दर सा कहीं ठहरा तो होगा
ये खाली सी आंखें चुभती बहुत हैं
इनमें हंसी ख्वाब का कभी पहरा तो होगा
ये बेचैनी, ये तल्ख़ी
हरदम से तो न होगी
इस बे-एहसास दिल के अन्दर
ज़ख्म जरूर गहरा तो होगा