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Jagrati Verma

Abstract

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Jagrati Verma

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खुद में

खुद में

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वो खुद में मगरूर रहता है

अपनी दुनिया में मशहूर रहता है

ना वास्ता किसी से, ना वास्ते किसी के

न जाने उसे कौन सा गुरुर रहता है


उसे फर्क नहीं पड़ता

वो कहता है

"मंज़िल की खबर नहीं मुझे

मेरा हमसफ़र ये सफ़र, ये रस्ता है!"


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